MUSAFIR
PART 5/5
I set out to go to the place I was told about. And the moment I reached that spot, I was totally mesmerized and speechless. The place was just so serene, so calm and was everything I thought of. But, seeing that, all I could think of was the journey that led me to this very point.
“कुछ ख़त्म हुआ है या अब कुछ शुरू ,
कि नयी राहों पे आज फिर चल दिया है ,
ये दिल होके बेज़ुबान ”.
" और ये दिल की ख़ामोशी आज , याद बचपन की ले आयी ,
जहाँ चुप से मेरे मन की , बेहद सी बातें थी |".
“और बातें तो उनसे भी सारी कर लेता था ,
पर अब तक इस दिल की एक आरज़ू , अधूरी है |”
“और इस अधूरेपन मे गुम आज , मेरी नींदें , मेरे ख्वाब भी ,
बस रात की इन लोरियों , का ही तो साथ है |”
बन के मुसाफिर आज , मंज़िल से मिला हूँ ,
तो फिर से एक सवाल मैं खुद से पूछता हूँ ,
कुछ ख़त्म हुआ है , या अब कुछ शुरू ”
And I realized that it is never about the destination, but the journey and all the moments and emotions one feels throughout the journey. And what I thought would be the end of my journey actually became a starting point to an everlasting journey of emotions and moments.